Home » विवाहिता-अविवाहिता दोनों को मिला गर्भपात का अधिकार

विवाहिता-अविवाहिता दोनों को मिला गर्भपात का अधिकार

by Aaditya Hriday


सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात कराने के मामले पर सुनाया ऐतिहासिक फैसला
पत्नी जबरन संबंध बनाने से प्रेग्नेंट हुई तो गर्भपात की हकदार

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने अपने फैसले में सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दे दिया। महिला चाहें वो विवाहित हों या अविवाहित। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत 22 से 24 हफ्ते तक गर्भपात का हक सभी को है। बेंच की अगुआई कर रहे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ये दकियानूसी धारणा है कि सिर्फ शादीशुदा महिलाएं ही सेक्शुअली एक्टिव रहती हैं। अबॉर्शन के अधिकार में महिला के विवाहित या अविवाहित होने से फर्क नहीं पड़ता। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में मैरिटल रेप को शामिल किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अगर जबरन सेक्स की वजह से पत्नी गर्भवती होती है तो उसे सेफ और लीगल अबॉर्शन का हक है।

विवाहित महिला भी सेक्शुअल असॉल्ट के दायरे में
विवाहित महिला भी सेक्शुअल असॉल्ट और रेप सर्वाइवर्स के दायरे में आती है। रेप की सामान्य परिभाषा यह है कि किसी महिला के साथ उसकी सहमति के बिना या इच्छा के खिलाफ संबंध बनाया जाए। भले ही ऐसा मामला वैवाहिक बंधन के दौरान हुआ हो। एक महिला पति के द्वारा बनाए गए बिना सहमति के यौन संबंधों के चलते गर्भपात हो सकती है।

अबॉर्शन के लिए बताना जरूरी नहीं होगा, रेप हुआ या सेक्शुअल असॉल्ट

रेप की परिभाषा में मेरिटल रेप को शामिल किए जाने की एकमात्र वजह मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी है। इसके कोई और मायने निकाले जाने पर एक महिला बच्चे को जन्म देने और ऐसे पार्टनर के साथ उसे पालने को मजबूर होगी। जिसने महिला को मानसिक और शारीरिक यातना दी है। हम यहां यह साफ करना चाहते हैं कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी के तहत अबॉर्शन कराने के लिए महिला को यह साबित करने की जरूरत नहीं है कि उसका रेप हुआ है या सेक्शुअल असॉल्ट हुआ है।

23 अगस्त को फैसला रखा था सुरक्षित
कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3 (2) (बी) किसी महिला को 20-24 सप्ताह के बाद मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कराने की अनुमति देती है। इसलिए केवल विवाहित महिलाओं को अनुमति और अविवाहित महिला को न देना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा। जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने 23 अगस्त को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

25 वर्षीय अविवाहिता ने दाखिल की थी याचिका
सुप्रीम कोर्ट ने यह बड़ा फैसला 25 साल की एक अविवाहित महिला की याचिका पर सुनाया। महिला ने अदालत से 24 हफ्ते के गर्भ गिराने की इजाजत मांगी थी। हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने 16 जुलाई को महिला की इस मांग को खारिज कर दिया था। महिला ने हाईकोर्ट को बताया था कि वह सहमति से सेक्स के चलते प्रेग्नेंट हुई। लेकिन बच्चे को जन्म नहीं दे सकती क्योंकि वह एक अविवाहित महिला है और उसके साथी ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया है। इसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

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