आज फेडरेशन ऑफ झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स के सभागार में झारखंड डिस्पोजेबल एवं पैकिंग मैटेरियल एसोसिएशन के सदस्यों की एक आपात बैठक संपन्न हुई, जिसमें राज्य के विभिन्न जिलों से आए हुए विभिन्न डिस्पोजेबल्स वस्तुओं के उत्पादकों एवं मुख्य व्यापारियों ने ने अहम रूप से भाग लिया । इस बैठक में 1 जुलाई से प्लास्टिक की विभिन्न वस्तुओं पर प्रतिबंध लगने की अधिसूचना से उपजी स्थिति पर व्यापक विचार विमर्श किया गया तथा इस संबंध में क्रमशः आंदोलन करने के विकल्पों पर विचार किया गया।
इस बैठक में सभी व्यापारियों ने झारखंड सरकार एवं केंद्र सरकार द्वारा लगाए जा रहे सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रति आने वाली 1 जुलाई से संभावित प्रतिबंधों का विरोध करते हुए इसके पक्ष में तरह-तरह के तर्क रखे । जिनमें यह बताया गया कि कि किस प्रकार प्लास्टिक को पूरी तरह से बैन किया जाना पर्यावरण के भी अनुकूल नहीं है। क्योंकि आज के दौर में विश्व में बनने वाली वस्तुओं में अधिक से ज्यादा वस्तुएं प्लास्टिक की ही निर्मित होती हैं और प्लास्टिक के साथ एक विशेष बात है कि यह बार-बार री-साइकिल होती है और इस प्रकार बारंबार प्रयुक्त होने के कारण और उस अंतिम बार इसका सड़क बनाने में उपयोग से लेकर एकाधिक कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है और विभिन्न देशों में किया भी जाता है।
इसके अलावा प्लास्टिक के कारण पेपर पर पड़ने वाला दबाव भी बहुत है, यदि प्लास्टिक को पूरी तरह से खत्म करने का सोच लिया जाए, तो विभिन्न पैकिंग मैटेरियल में उपयोग आने वाले पेपर के आइटमों का उपयोग इतना बढ़ जाएगा कि विश्व के जंगल के जंगल नष्ट हो जाएंगे । संभवत: भारत सरकार द्वारा इसका आकलन अभी तक नहीं किया गया है।
व्यापारियों ने कहा कि व्यापारी वर्ग आमतौर पर शांत प्रवृत्ति का होता है और यह केवल स्वयं व्यापार नहीं करता, बल्कि देश भर में करोड़ों लोगों को रोजगार भी प्रदान करता है और साथ ही राज्य एवं केंद्र सरकार को लाखों करोड़ रुपए का राजस्व भी प्रदान करता है। लेकिन यदि कोरोना काल में पहले से ही टूट चुकी कमर के पश्चात अभी अचानक इस तरह की स्थिति पैदा होने पर इस सेक्टर का क्या होगा और जब सरकार रोजगार निर्मित कर पाने में अक्षम सिद्ध हो रही है, तो ऐसे में पहले से मौजूद उद्योगों को इस प्रकार नष्ट करने से वर्तमान बेरोजगारी बढ़कर किस रूप में पहुंच जाएगी, इसका आकलन भी संभवत: अभी तक नहीं किया गया है।
इसके अलावा पर्यावरण से संबंधित इस मुद्दे पर विश्व के लगभग 30 लोगों ने इस पर लगने वाले प्रतिबंधों को आने वाले 8 वर्षों के लिए टाल दिया है, ऐसे में भारत जैसे अरबों की जनसंख्या वाले देश में इस प्रकार का प्रतिबंध लागू करना एक तरह से देश को सैकड़ों वर्षो पूर्व ले जाने जैसा हो जाएगा। अतः इस प्रतिबंध को तत्काल टाला जाए।
इसके अलावा इस उद्योग से जुड़े हुए तमाम लोन एनपीए हो जाएंगे और इस उद्योग से जुड़े हुए तमाम लोग बेरोजगार हो जाएंगे । यह संख्या 30 लाख से ऊपर है। तो 30 लाख लोगों पर आश्रित लगभग डेढ़ से दो करोड़ लोगों को रोजी रोटी के लाले पड़ जाएंगे। क्या सरकार का इस तथ्य पर ध्यान है?
इसके अलावा प्लास्टिक के विकल्प में के रूप में मौजूद तमाम पेपर एवं बायोडिग्रेडेबल साधनों के प्लास्टिक की अपेक्षा कम से कम 5 गुना तक महंगे होने के कारण उनसे निर्मित पैकिंग मैटेरियल के भी इसी अनुपात में महंगे हो जाने की संभावना है। जिससे महंगाई और बढ़ेगी, जिसे संभाल पाना किसी भी सरकार के बस का नहीं रह जाएगा।
इन सभी तथ्यों के मद्देनजर डिस्पोजेबल एवं पैकिंग मैटेरियल एसोसिएशन ने प्लास्टिक के विकल्प के आने के तक प्रतिबंध लगाने पर रोक लगाने को कहा है। क्योंकि नष्ट होने वाली प्लास्टिक पर अभी शोध कार्य चल रहे हैं और आने वाले 2 वर्षों में नष्ट हो जाने वाली प्लास्टिक भी तैयार हो जाने की पूरी संभावना है। अतः कम से कम इन वर्षों तक इस प्रतिबंध को टाले रखने में ही समूचे देश की भलाई दिखती है।
इस बैठक में जमशेदपुर से आए अमित अग्रवाल, पवन अग्रवाल, संजय मुनका, एवं रांची से संगठन के अध्यक्ष कुणाल विजयवर्गीय, सचिव राजीव थेपड़ा, कोषाध्यक्ष सुनील गुप्ता तथा साहित्य अग्रवाल, अनूप अग्रवाल, अंकित अग्रवाल इत्यादि उपस्थित हुए
कुणाल विजयवर्गीय,राजीव थेपरा,सुनील गुप्ता,अमित अग्रवाल,पवन संघी,दिनेश चापोलिया,संजय मोनका.अंकित डीडवानिया,साहित्य अग्रवाल,मिठू जी एवम काफी लोग मौजूद थे
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