सरायकेला के आदिवासी गांव दे रहें है सिविल सोसायटी को सीख

सरायकेला। राजनगर से मुख्यालय सरायकेला आने के दौरान रास्ते में एक गांव पड़ता है, जिसका नाम है नामीबेड़ा। सड़क के दोनों ओर मिट्टी के घर बने हैं, जिनमें सलिके से की गयी पेंटिग देखते ही बरबस गाड़ियों में ब्रेक लग जाते हैं। गुजरने वाले राही रूक-रूक कर फोटो और सेल्फी लेते दिखते हैं। ऐसी मनोरम मनोहारी छटा, जो बिरले ही दिखे। मिट्टी के मकान और खपरैल की छत, लेकिन साफ-सफाई और रंग-रोगन ऐसी, जो महानगरों के चकाचौंध को मात दे दे। दरअसल, यह क्षेत्र संथाली आदिवासियों का है। इनका रहन-सहन, इनकी सादगी महानगरों की बड़ी-बड़ी सिविल सोसायटियों को भी सीख देती है। घरों के दीवारों पर चटख रंगों की अदभुत कारिगरी देख यहीं बस जाने को मन करता है। परिवहन मंत्री चंपई सोरेन का यह विधानसभा क्षेत्र निश्चित तौर पर झारखंड की एक अलग तस्वीर दुनिया के सामने पेश करता है।
यह कला हमारी संस्कार है : लक्खन
सरायकेला के राजनगर प्रखंड के नामीबेड़ा गांव के ग्राम प्रधान लक्खन मार्डी कहते हैं कि घरों को ऐसे चित्रों से सजा कर रखने की सीख हमें विरासत से मिली है। वे बताते हैं कि यह कला हम गांव के लोगों के संस्कार का हिस्सा है।

गांव की लड़कियां ही करती है पेंटिंग : सुंदर
नामीबेड़ा के रहने वाले सुंदर मार्डी इंटर पास हैं और वे सोलर प्लेट का बिजनेस करते हैं। घरों पर बनें इस कलाकारी के बारे में पूछने पर बताते हैं कि गांव की लड़कियां ही ये पेंटिंग कर अपने-अपने घरों को सजा लेती हैं। उन्होंने बताया कि गांव के युवक खुद मिलजुल कर साफ-सफाई करते हैं।
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