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📌 गांडीव लाइव डेस्क:
आज़म खां की रिहाई: उत्तर प्रदेश की सियासत पर गहरा असर 🗳️
लखनऊ में आज़म खां की जेल से रिहाई ने उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य में हलचल पैदा कर दी है। सवाल यह है कि उनकी वापसी से समाजवादी पार्टी (सपा) को किस तरह लाभ होगा, खासकर मुस्लिम मतदाताओं के संदर्भ में। सपा इस अवसर का इस्तेमाल करके मुस्लिम समुदाय में संभावित मत विभाजन को रोकने का प्रयास करेगी। वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उनके बयानों का उपयोग हिन्दू मतदाताओं के ध्रुवीकरण के लिए कर सकती है।
मुस्लिम मतों का बिखराव रोकने में सपा की भूमिका 🤝
आज़म खां, जो अब 77 वर्ष के हो चुके हैं, ने अपने समर्थकों के बीच हमेशा एक प्रभावशाली स्थिति बनाए रखी है। उनके जेल से बाहर आने के बाद रामपुर और अन्य जिलों में मुस्लिम युवाओं के बीच उनके प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 2009 में जब आज़म ने सपा छोड़ दिया था, तो पार्टी को इसका भारी नुकसान हुआ था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे सपा की राजनीति का एक अहम हिस्सा रहे हैं।
सावधानी से उठाने होंगे कदम ⚖️
2024 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम मतों का रुख कांग्रेस की ओर जाते हुए देखा गया था। ऐसे में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में, भले ही सपा सीधे तौर पर आज़म का इस्तेमाल न भी करे, लेकिन उनके अस्तित्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आज़म की रिहाई के बाद उनके तीखे बयानों में कोई कमी नहीं आई है, और उनकी बयानबाजी यह संकेत देती है कि सपा को उनके संदर्भ में सावधानी बरतनी पड़ेगी।
भाजपा की रणनीति: नफरत से ध्रुवीकरण का प्रयास ⚡
भाजपा ने आज़म खां की बयानों को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। जैसे कि भारत माता के संदर्भ में दिया गया उनका विवादास्पद बयान। अगर भविष्य में धार्मिक ध्रुवीकरण की स्थिति बनती है, तो भाजपा इसका लाभ उठाने से चुक नहीं जाएगी।
कांग्रेस के लिए चुनौती 🥊
हालांकि, आज़म खां के किसी अन्य पार्टी में जाने का सवाल भी सामने आता है। कांग्रेस, जो पश्चिम उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतों के लिए संघर्ष कर रही है, को आज़म के आगे आने की कल्पना करना आसान नहीं होगा। अगले विधानसभा चुनावों में, जहां सपा और कांग्रेस एक साथ मिलकर लड़ने की तैयारी कर रही हैं, वहां इन राजनीतिक समीकरणों को समझना बेहद जरूरी होगा।
निष्कर्ष
आज़म खां की रिहाई ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। सपा, भाजपा और कांग्रेस सभी को यह समझना होगा कि इस स्थिति का सही मूल्यांकन कैसे किया जाए। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे आने वाले समय में यह सियासी समीकरण कैसे बदलते हैं।

