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केला से खुश होती है मां स्कंदमाता

by Aaditya Hriday

नवरात्र का पांचवा दिन

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

नवरात्रि के पांचवें दिन मां के पंचम स्वरूप माता स्कंदमाता की पूजा- अर्चना की जाती है। मां अपने भक्तों पर पुत्र के समान स्नेह लुटाती हैं। मां की उपासना से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। मां का स्मरण करने से ही असंभव कार्य संभव हो जाते हैं।

स्कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान हैं, इसी कारण उन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। मां स्कंदमाता को पार्वती एवं उमा नाम से भी जाना जाता है। मां का वाहन सिंह है। मां स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं।

नवरात्र के पांचवे दिन ललिता पंचमी व्रत भी रखा जाता है। इस व्रत को करने से जीवन में आने वाली हर तरह की समस्या से मुक्ति मिल जाती है। मां स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। दाएं भुजा से भगवान स्कंद को पकड़ा हुआ है। नीचे वाली भुजा में कमल का फूल हैं और बाई वाली भुजा वरदमुद्रा में है। गौण वर्ण के कारण मईया को गौरी भी कहते हैं।

नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता को केले का भोग लगाना चाहिए इससे बुद्धि और स्मरण शक्ति का विकास होता है। पुराणों के अनुसार भगवान कार्तिकेय को ‘स्कंद’ नाम से भी जाना जाता है। माता ने अपने गोद में भगवान स्कंद को लिया है इसलिए माता के इस स्वरूप को स्कंदमाता कहते हैं। मां अपने पुत्र से बेहद प्रेम करती है। मां दुर्गा का यह रूप बेहद दयालु और कोमल हृदय का है। मां स्कंदमाता की पूजा करने से पहले स्नान कर साफ कपड़े पहन लें। माता को रोली कुमकुम और फूल अर्पित करें। इसके साथ ही साथ माता को श्रृंगार का सामान भी चढ़ाएं।

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