झारखंड खुदरा शराब विक्रेता संघ ने मुख्य सचिव और वित सचिव को लिखा पत्र

by Aaditya HridayAaditya Hriday


राज्य में व्यवहारिक एक्साइज़ पाॅलिसी लाने का किया आग्रह

छत्तीसगढ़ लिकर पाॅलिसी और माॅडल का किया विरोध
रांचीः झारखंड खुदरा शराब विक्रेता संघ ने झारखंड सरकार से बोल्ड एवं व्यवहारिक एक्साइज़ पाॅलिसी लाने के लिए आग्रह किया है। संघ ने झारखंड में लिकर उद्योग के हितधारकों और उपभोक्ताओं ने राज्य सरकार द्वारा नई एक्साइज़ पाॅलिसी बनाने के कथित कदम पर आंशका जताई है। संघ के अनुसार झारखण्ड में छत्तीसगढ़ लिकर पाॅलिसी और माॅडल को दोहराने से राज्य सरकार सहित किसी भी हितधारक को लाभ नहीं होगा। ऐसे में, राज्य में लिकर चेन से जुड़े विभिन्न हितधारकों ने झारखण्ड सरकार से आग्रह किया है कि आगामी बजट में नई एक्साइज़ पाॅलिसी की घोषणा करते समय व्यवहारिक कदम उठाएं। उन्होंने यह भी कहा है कि बोल्ड लिकर पाॅलिसी से न सिर्फ सरकार का राजस्व बढ़ेगा बल्कि इस क्षेत्र में नया निवेश भी आकर्षित होगा औ रसाथ ही रोज़गार के नए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष अवसर भी उत्पन्न होंगे। संघ के अध्यक्ष अचिनत्य कुमार शाॅ ने राज्य सरकार की नई एक्साइज़ नीति का ज़ोरदार विरोध किया है। उन्होंने कहा कि तीन साल यानि 2016-19 तक झारखंड की लिकर शाॅप्स का संचालन राज्य स्वामित्व की झारखण्ड राज्य बेवरेजेज़ काॅर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा किया जाता था और इस दौरान राजस्व के लक्ष्य पूरे नहीं हुए। अगले तीन साल यानि 2019-22 के बीच लिकर शाॅप्स प्राइवेट प्लेयर्स को दे दी गईं और अब यह तीन साल की अवधि समाप्त होने जा रही है। शाॅ ने बताया कि इस अवधि में राज्य में कोविड लाॅकडाउन के बावजूद एक्साइज़ के लक्ष्य पूरे हुए हैं। झारखंड सरकार द्वारा अपनाई गई छत्तीसगढ़ अडवाइज़री में राज्य एक्साइज़ विभाग के द्वारा गलत आंकड़े दिए गए हैं। इसमें तथ्यों को छिपाने के लिए सेल्स टैक्स को शामिल किया गया है। शाॅ ने बताया कि उन्होंने इस विषय में राज्य के मुख्य सचिव और वित सचिव को लिखा है। लिकर के के सेवन की आदतों पर बात करते हुए उद्योग जगत के दिग्गजों ने बताया कि झारखण्ड के उपभोक्ता भारत में निर्मित विदेशी लिकर को पसंद करते हैं, वहीं छत्तीसगढ़ के उपभोक्ता देश की अपनी लिकर को पसंद करते हैं। झारखण्ड की कुल आबादी 3.5 करोड़ है, जिसमें से आदिवासी आबादी 26 फीसदी है। वहीं छत्तीसगढ़ की कुल 2.5 करोड़ की आबादी में से आदिवासी आबादी 32 फीसदी है। उद्योग जगत के दिग्गजों ने बताया कि पारम्परिक आदिवासी लोग स्वदेशी लिकर को पसंद करते हैं। इस तथ्य की पुष्टि इस बात से होती है कि 2020-21 के दौरान 70.54 लाख मामलों में स्वदेशी लिकर बेची गई। इसके विपरीत इसी अवधि के दौरान झारखण्ड में 25.66 लाख मामलों में स्वदेशी लिकर बेची गई। स्पष्ट है कि झारखण्ड भारत में निर्मित विदेशी लिकर पर ज़्यादा निर्भर है।

Have any thoughts?

Share your reaction or leave a quick response — we’d love to hear what you think!

Your Opinion on this News...

You may also like

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More