रांची। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के प्रमुख इकबाल सिंह लालपुरा ने कहा है कि केंद्र और झारखंड सरकार ने तय किया है कि जैन स्थल सम्मेद शिखरजी तीर्थस्थल ही रहेगा। इसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित नहीं किया जाएगा। लालपुरा ने कहा कि आयोग ने इस मामले पर सुनवाई की थी जहां झारखंड सरकार ने आश्वासन दिया कि वह जल्द ही इस बाबत आधिकारिक आदेश जारी करेगी। लालपुरा ने कहा, झारखंड में सम्मेद शिखरजी, जिसे लेकर जैन समुदाय के लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, केंद्र और झारखंड सरकार ने उसे धार्मिक स्थल रहने देने का फैसला किया है। उन्होंने कहा, मांस/मदिरा के सेवन की वहां अनुमति नहीं होगी। हमने मामले में दखल दिया और हमारी सिफारिश पर ध्यान देने के लिए हम केंद्र और झारखंड की सरकारों का आभार जताते हैं। लालपुरा ने कहा कि जैन समुदाय इस फैसले से संतुष्ट है। उन्होंने कहा कि झारखंड के संबंधित अधिकारियों को सरकारी अधिसूचना की समीक्षा करने और उसमें पवित्र/धार्मिक शब्द जोड़ने की सलाह दी गयी है ताकि क्षेत्र की शुचिता बनायी रखी जा सके।लालपुरा ने कहा, ह्यह्यहमने सलाह दी है कि सरकारी आदेश में पर्यटक शब्द को बदल दिया जाये। केंद्र सरकार ने पारसनाथ पर्वत पर पर्यटन से संबंधित सभी गतिविधियों पर पांच जनवरी को रोक लगा दी थी, जहां सम्मेद शिखरजी स्थित है। झारखंड सरकार को निर्देश दिया था कि वह स्थल की पवित्रता की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाये। इससे पहले केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इस मुद्दे पर जैन समुदाय के विभिन्न प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी और उन्हें आश्वस्त किया था कि सरकार सम्मेद शिखरजी पर्वत क्षेत्र की पवित्रता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
आदिवासी संगठनों ने तेज किया आंदोलन : कई आदिवासी संगठनों ने पारसनाथ पर्वत को आदिवासियों को सौंपने की मांग की है। आदिवासी सेंगेल अभियान के द्वारा मरांगबुरू बचाओ भारत यात्रा शुरू की जा चुकी है। इसके अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के इस फैसले पर कहा है कि क्या आदिवासियों का ईश्वर नहीं है? धर्म नहीं है? तीर्थ स्थल नहीं है? यह भारत के आदिवासियों के खिलाफ एक बड़ा षड्यंत्र है।
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